Wednesday, November 24, 2010
भारतीयता की विस्मृति क्यों...
वन्दे मातरम, समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" की और से आदाब, सतश्री अकाल, सादर प्रणाम !!
आप सभी सम्मानीय जनों को सूचित करते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है की हमारा, आपका, जन जन का निस्वार्थ, गैर राजनैतिक गैर जातीय, गैर धार्मिक जन्चेत्नामक आन्दोलन, "अभियान भारतीय" निरंतर प्रगति एवं लोकप्रियता के पथ पर संचालित है | हर आयु, हर वर्ग, हर जाती हर धर्म से समर्थन एवं सहयोग प्राप्त हो रहा है | मै पुनः इस महाभियान को जन जन तक पहुँचाने में तन, मन, धन से जुटे सभी आत्मीय जनों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ एवं भविष्य में भी उनके सहृदय सहयोग को बनाये रखने की अपील करता हूँ |
आज मन में कुछ सवाल हैं उन्हें आप तक पहुँचाने के लिए उपस्थित हूँ | आज मेरी मुलाकात एक 4-5 वर्षीय बालक से हुई जो सच में बड़ा तीव्र बुद्धि का था और बड़ी बेबाकी के साथ हर प्रश्न का उत्तर दे रहा था वह भी फर्राटेदार अंग्रेजी में, उसके साथ उसके माता पिता भी थे जो उसकी विद्वता पर मुस्कुरा रहे थे और अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे | जानकर आश्चर्य होगा की वह बालक बड़ी बेबाकी के साथ अंग्रेजी में किये गए प्रश्नों का उत्तर तो दे पा रहा था पर जब उससे हिंदी में कुछ पूछा जाता तो वह दिन में तारे गिनने लगता और उसके माता पिता फिर से बड़े गर्व के साथ बताते की यह इंग्लिश मीडियम का स्टुडेंट है, इसलिए ठीक से हिंदी नहीं बोल पाता हाँ इंग्लिश में आप जो भी पूछ लें यह बता देगा, मै जब से उस बालक से मिला हूँ मन में यह प्रश्न बार बार आता है की क्या यही हैं मेरे देश का भविष्य ? क्या हम इन्ही के बल पर अपने भारत को विश्वगुरु और विश्व महाशक्ति बनाने का स्वप्न देख रहे हैं ? आज आवश्यकता है, चिंतन कर इस निष्कर्ष पर पहुँचने कि, की क्या हम देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं ? मेरे नजर में दोष उस बालक का नहीं दोष है माता पिता और इस व्यवस्था का जहाँ आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम अंग्रेजी के गुलाम बने नजर आते हैं आखिर क्यों हम अपनी ही मातृभाषा, अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता से भागने की कोशिश करते हैं |
मै स्वयं युवा हूँ और मुझे कहने में कोई संकोच नहीं की आज की हमारी युवा पीढ़ी भी पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण में अपनी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों को भूलती जा रही है हमारे युवाओं को फ्रेंडशिप डे और वेलेंटाइन डे तो याद रहता है पर राष्ट्रीय महापुरुषों की जन्मतिथि और पुण्यतिथि नहीं | केवल भारत में रहने मात्र से हम भारतीय नहीं हो जाते हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा |
मै इस पोस्ट के माध्यम से यह अपील भी करना चाहता हूँ की हमें बचपन से बच्चों को अपनी भाषा, अपनी संस्कृति से अवगत कराना होगा देशभक्ति की भावना को उनमे समाहित करना होगा और तब यह देश अपने विश्वगुरु के पद पर पुनः प्रतिष्ठित हो सकेगा | "अभियान भारतीय" एक प्रयास है हमारे भीतर विस्मृत होती भारतीयता की भावना को पुनर्जीवित करने का, हमारा संकल्प है की हम इस अभियान के माध्यम से न केवल देशवासियों को सर्वप्रथम "भारतीय" बनने की प्रेरणा दें वरन उन्हें अपने संस्कार अपनी संस्कृति और सभ्यता से परिचित भी कराएँ |अंत में मै आपसे आव्हान करता हूँ की इस महाभियान में शामिल होकर "भारतीयता" के सन्देश को जन जन तक पहुंचावें और भारत को विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने के स्वप्न को साकार करें |
अभियान भारतीय को जन जन तक पहुँचाना है,
भारत को विश्वगुरु बनाना है.
"जय हिंद, जय भारत, जय अभियान भारतीय"
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... saarthak abhivyakti ... kintu vah din door naheen jab sampoorn dharti par ek bhaashaa hi boli va suni jaayegee !!!
ReplyDelete.
ReplyDeleteहमें बचपन से बच्चों को अपनी भाषा, अपनी संस्कृति से अवगत कराना होगा देशभक्ति की भावना को उनमे समाहित करना होगा और तब यह देश अपने विश्वगुरु के पद पर पुनः प्रतिष्ठित हो सकेगा |
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बहुत सार्थक बात कही आपने । देश की उन्नति उसकी भाषा , सभ्यता तथा संस्कारों का सम्मान करने से ही संभव है।
सुन्दर, सार्थक तथा सामयिक आलेख !
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अभियान भारतीय को जन जन तक पहुँचाना है,
ReplyDeleteभारत को विश्वगुरु बनाना है.
जय हिंद ....!!
सन्देशगर्भित पोस्ट...
ReplyDeleteभारतीयता को स्थापित करता यह महाअभियान जन जन के मन में एकता, बंधुत्व और सौहार्द्रता स्थापित करने में अवश्य कामयाब होगा गौरव जी,... आमीन.
समस्या के व्यवहारिक पहलू पर भी विचार करें...मात्र माता-पिता को दोषी ठहराने से नहीं होगा। बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा महत्वपूर्ण है। आज कितने हिन्दी माध्यम के विद्यालय हैं जो प्राइमरी स्तर पर बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराते हैं ? इसके विपरीत अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षा का स्तर ऊँचा है। मजा तो यह है कि हिन्दी माध्यम के विद्यालय का सरकारी शिक्षक भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में ही पढ़ाना चाहता है।
ReplyDelete...आपका अभियान सफल हो हार्दिक शुभकामनाएं..
शाबाश बेटे!
ReplyDeleteशाबाश ! !
जो प्रश्न हमारे जैसे घिसे पिटे लोगों को उठाना चाहिए उसे तुम जैसा नौजवान उठारह है, यह बहुत ही संतोष की बात है, अपनी संस्कृति. अपनी भाषा के प्रति जो लगाव माता-पिता भूल रहें हैं है, उसे नवयुवक याद रखे है, याद दिला रहें हैं. यह मन की जीविका के लिए अंग्रेजी सहायक है, परंरू माँ - बाप भूल कर रहें है है वे ही बच्चे एक दिन उन्हें 'ब्रिद्धावास्था भवन' भिजवा देंगे तब गलती का आभास होगा. अभी तो या प्रत्श्पर्ध्हा में हो रहा है, पडोसी का बछा पढ़ रहा है तो हमारा क्यों नहीं? मई ऐसे कुछ मकान को जानता हु जो करोड़ों के हैं मगर खाली, बच्चे विदेश में हैं और माँ- बाप नौकर कर सहारे और नौकार कैसी बात कहते हैं, चटकारे मारते हैं, नोचते ख्सोसते है वह ....क्या कहने ? बेटा इस देश की धरोहर आप जैसे ओजस्वी और संवेदनशील हाथों में ही सुराक्षित है......साधुवाद ईश्वर चुनौतिओं से लड़ने की शक्ति और साहस दे......मई साथ हूँ जब भी याद करोगे पीछे खड़ा मिलूंगा वडा है.......बश इतना ही.........!
डाक्टर जे. पी. तिवारी साहब से सहमत...
ReplyDeleteज्वलंत प्रश्न... भाई देवेन्द्र पाण्डेय जी के तथ्य को भी नकारा नहींजा सकता... शिक्षा नीती अंग्रेजी आधारित होती जा रही है.. एक सार्थान चिंतन के लिए बधाई
JAY HIND, JAY ABHIYAN BHARTIYA.
जय हिंद ..... गौरव अंकल मुझे भी आपका यह ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteबहुत अच्छे सन्देश को सहेजे है यह आलेख..... प्रासंगिक विचार....जिनके विषय में हम सबको और ख़ास कर देश के युवाओं को समझने की दरकार है.....आभार
ReplyDeleteआदरणीय श्री अभियान भारतीय जी,
ReplyDeleteनमस्कार।
आपने मेरे ब्लॉग पर आकर, अपना बहुमूल्य समय, समर्थन एवं स्नेह प्रदान किया। इसके लिये मैं और भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के 4543 आजीवन कार्यकर्ता आपके आभारी हैं। आपका ब्लॉग देखने पर ज्ञात होता है कि आप ब्लॉग के माध्यम से सोये हुए लोगों को झकझोर रहे हैं। बास परिवार की ओर से आपको एवं आपके परिवार को सुख, शान्ति एवं प्रगति की शुभकामनाएँ।
मैं आपके इस विचार से सहमत हूँ :
"मै स्वयं युवा हूँ और मुझे कहने में कोई संकोच नहीं की आज की हमारी युवा पीढ़ी भी पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण में अपनी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों को भूलती जा रही है हमारे युवाओं को फ्रेंडशिप डे और वेलेंटाइन डे तो याद रहता है पर राष्ट्रीय महापुरुषों की जन्मतिथि और पुण्यतिथि नहीं | केवल भारत में रहने मात्र से हम भारतीय नहीं हो जाते हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा|"
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
0141-2222225, 98285-02666
Very good kept up man Vande Matram.......
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